छत्रपति शिवाजी महाराज यह नाम किसी की तारीफ का मोहताज नहीं। भारत के महान शासकों में उनका नाम गिना जाता है । वह भारत के एक महान राजा एवं रणनीतिकार थे। पश्चिम भारत में इन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी। मुगल साम्राज्य के शासक औरंगजेब से संघर्ष किया और मराठों के लिए छत्रपति बन गए। जी हां! छत्रपति शिवाजीराजे भोसले, आज की इस पोस्ट में हम आपको शिवाजी महाराज और बिजापुर सल्तनत से संघर्ष के बारे में जानकारी दे रहे हैं।
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शिवाजी महाराज और बीजापुर सल्तनत से संघर्ष |
परिचय
महाराष्ट्र में छत्रपति शिवाजी महाराज को किसी भगवान से कम नहीं माना जाता। इसका पता आप इस बात से लगा सकते हैं कि - 19 फरवरी, छत्रपति शिवाजी महाराज जयंती के अवसर पर महाराष्ट्र के हर गली और हर चौराहे पर छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाई जाती है। इसी के साथ भारी मात्रा में जुलूस भी निकाला जाता है। शिवाजी महाराज बहुत बहादुर, बुद्धिमानी, शौर्यवान और दयालु शासक थे। शिवाजी महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे।
शिवाजी महाराज ने इसवी सन 1974 में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। इसके लिए उन्होंने मुगल साम्राज्य के शासक औरंगजेब से भी संघर्ष किया। पश्चात, रायगड में उनका राज्याभिषेक हुआ और वह छत्रपति बन गए।
नाम | शिवाजी शहाजी राजे भोसले |
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जन्म | 19 फ़रवरी 1630 |
जन्म स्थान | शिवनेरी दुर्ग, पुणे |
माता एंव पिता | जीजाबाई (माँ), शहाजी राजे (पिता) |
पत्नियां | सईबाई निंबालकर, सोयराबाई मोहिते, सकवरबाई गायकवाड, सगुणाबाई शिर्के, पुतलाबाई पालकर, काशीबाई जाधव, लक्ष्मीबाई विचारे, गुंवांताबाई इंगले |
बेटे एंव बेटियां | बेटियां : सखुबाई, रानूबाई, अम्बिकाबाई, दीपाबाई, कमलाबाई, तथा राजकुंवर बाई बेटे : संभाजी महाराज, राजाराम प्रथम |
भाई | संभाजी, व्यंकोझी (सौतेला भाई), संताजी (सौतेला भाई) |
प्रसिद्धि का कारण | स्वराज की स्थापना करने का महान कार्य |
उपाधि | छत्रपति, हिंदू धर्म सुधारक, गो ब्राह्मण प्रतिपालक, राजा (राजे) |
शासनावधि | 1674-1680 |
निधन | 3 अप्रैल 1680, रायगड का किला, महाराष्ट्र, भारत |
शिवाजी महाराज का जन्म, शिक्षा एवं प्रारंभिक जीवन
19 फरवरी इसवी 1630 को पुणे जिले के जुन्नार गांव के शिवनेरी किले पर शिवाजी का जन्म हुआ था। शिवाजी की मां जीजाबाई देवी शिवाई की बहुत बड़ी भक्त थी । देवी शिवाई का शिवनेरी किले पर मंदिर भी था। शिवाजी का जन्म शिवनेरी किले पर हुआ। इससे प्रभावित होकर, उनकी मां ने देवी के नाम से मिलता जुलता नाम अपने पुत्र का रखा और वह नाम था- शिवाजी।
शिवाजी के पिता जी शहाजीराजे भोसले, आदिल शाह के दरबार में सेना के प्रमुख और एक बहादुर योद्धा थे। उनकी मां जीजाबाई भी जाधवराव कुल में उत्पन्न हुई एक असाधारण प्रतिभाशाली महिला थी। इसी के साथ उनकी मां बहुत धार्मिक प्रवृत्ति की थी और यही प्रभाव शिवाजी पर भी पड़ा। शिवाजी ने रामायण तथा महाभारत का बहुत अच्छे से अध्ययन करके बहुत सारी बातें सीखी और अपने जीवन में उतारा। शिवाजी बचपन में ही हिंदुत्व को बहुत अच्छे से समझ चुके थे। उन्होंने बचपन में ही ठान लिया कि उन्हें अपने पूरे जीवन में हिंदुत्व के ही मार्ग पर चलना है।
शिवाजी के पिता जी ने जब दूसरी शादी की तब वह पत्नी जीजाबाई और बेटे शिवाजी को दादोजी कोंडदेव के पास छोड़कर कर्नाटक चले गए। इसके पश्चात माता जीजाबाई तथा संरक्षक कोंडदेव ने प्राचीन भारतीय ग्रंथ महाभारत, रामायण, तथा अन्य शास्त्रों का संपूर्ण ज्ञान दिया तथा उन्हें युद्ध नीति सिखाई ।। कोंडाजी ने उन्हें सेना, घुड़सवा और राजनीति के बारे में बहुत सारी बातें सिखाई।
शिवाजी की माँ जीजाबाई एक बहादुर, देशभक्त और धर्मपरायण महिला थीं। इसीलिए उन्होंने बचपन से ही अपने वीर पुत्र शिवाजी के भीतर देशभक्ति और नैतिकता की भावना पैदा की। शिवाजी में गरिमा, धैर्य, बहादुरी और धर्मपरायणता जैसे मूल्यों का विकास किया। इसी के साथ ही उन्होंने महिलाओं के प्रति सम्मान की भावना पैदा की।
शिवाजी बचपन से ही बहुत ही बुद्धिमानी और तेज दिमाग के थे। इसीलिए उन्होंने ज्यादा शिक्षा ग्रहण तो नहीं की। लेकिन उन्हें जितना भी सिखाया जाता था । वह उसे सटीकता से मन लगाकर सीखते थे। 12 साल की उम्र में शिवाजी बंगलौर गए। जहां उन्होंने अपने भाई संभाजी और माँ के साथ शिक्षा ग्रहण की। वहीं शिवाजी का 12 साल की उम्र में सईबाई से विवाह हो गया।
शिवाजी जब 12 वर्ष के थे। तब उन्हें पिता की जागीर पूना प्राप्त हुई। वह अपने साथियों के साथ तलवारबाजी, घुड़सवारी, तीर कमान इत्यादि से नकली युद्ध करते थे। शिवाजी रणनीति बनाते और शत्रु पर अचानक से आकर के आक्रमण करते। उनके सरसेनापति हंबीरराव मोहिते थे; जो रिश्ते में उनके साले भी थे।
शिवाजी महाराज का वैवाहिक जीवन
12 साल की उम्र में छत्रपति शिवाजी महाराज ने 14 मई 1640 को सईबाई निंबालकर से शादी की। उनकी शादी पुणे के लाल महल में हुई थी। शिवाजी महाराज की 8 पत्निया तथा 8 संताने थी। जिनमें 2 पुत्र संभाजी और राजाराम तथा 6 पुत्रियां सखुबाई, रानूबाई, अम्बिकाबाई, दीपाबाई, कमलाबाई, तथा राजकुंवरी बाई थी। इस जानकारी को हम आपको निम्न टेबल के जरिए बता रहे हैं।
शिवाजी की पत्नियां | विवाह का दिनांक | संताने |
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सईबाई निंबालकर | 16 मई 1640 | सखुबाई, रानूबाई, अंबिकाबाई और संभाजी महाराज |
सोयराबाई मोहिते | 1660 | दीपाबाई और राजाराम प्रथम |
पुतलाबाई पालकर | 1653 | निःसंतान |
सकवरबाई गायकवाड | जनवरी 1656 | कमलाबाई |
काशीबाई जाधव | 8 अप्रैल 1657 | अज्ञात |
सगुणाबाई शिर्के | अज्ञात | राजकुंवर बाई |
लक्ष्मीबाई विचारे | अज्ञात | अज्ञात |
वांताबाई इंगले | अज्ञात | अज्ञात |
बीजापुर सल्तनत से शिवाजी का संघर्ष
इसवी सन 1646, 16 वर्षीय शिवाजी ने आदिल शाह की बीमारी का फायदा उठाया। शिवाजी ने तोरणा किले पर अपना कब्जा करके वहां मिले बड़े खजाने को जप्त कर लिया। शिवाजी, यहीं नहीं रुके उन्होंने अगले 2 वर्षों में पुणे और उसके पास के महत्वपूर्ण किलो पर अपना कब्जा जमा लिया। जिनमें पुरंदर कोंडाना और चाकन शामिल थे। इसी के साथ उन्होंने पुणे के पूर्व में सूपा, बारामती और इंदापुर के आसपास के क्षेत्रों को भी सीधे अपने नियंत्रण में ले लिया।
तोरणा दुर्ग पर कब्जा करने के दौरान मिले हुए खजाने का उपयोग शिवाजी ने राजगढ़ नाम का नया दुर्ग बनाने में किया। राजगढ़ दुर्ग एक दशक से भी अधिक समय तक उनकी सरकार की सीट के रूप में कार्यरत रहा। इसके पश्चात, शिवाजी ने कोंकण की ओर बढे और कल्याण के महत्वपूर्ण शहर पर कब्जा कर लिया।
इसके पश्चात, बीजापुर सरकार ने शिवाजी की इन साठी घटनाओं पर ध्यान देते हुए कार्यवाही करने की मांग की। 25 जुलाई 1648 बीजापुर सरकार के आदेश के तहत मराठा सरदार बाजी घोरपड़े ने शाहजी को कैद कर लिया। यह इसलिए कि शिवाजी को टोका जा सके। हालांकि, इसवी 1649 में, आदिल शाह ने कर्नाटक के जिंजी किले पर अपना कब्जा जमा लिया। जिससे उसका स्थान सुरक्षित हो गया और उसने शाहजी को रिहा कर दिया।
ईसवी 1649 से 1655 तक शिवाजी महाराज ने अपने विजय यात्रा को रोक कर चुपचाप जो कुछ हासिल किया उसे मजबूत करने लगे। जब उनके पिता की रिहाई हो गई। उसके पश्चात शिवाजी ने फिर से छापेमारी शुरू कर दी।
इस बार शिवाजी के निशाने पर बीजापुर के मराठा सामंत चंद्र राव मोरे थे। विवादास्पद परिस्थितियों में शिवाजी ने उनकी हत्या कर दी और महाबलेश्वर के वर्तमान हिल स्टेशन के पास जावली की घाटी उनसे छीन ली। जावली हासिल करने के पश्चात शिवाजी के लिए दक्षिण और दक्षिण-पश्चिम महाराष्ट्र में छापेमारी के दरवाजे खुल गए थे।
आदिल शाह की सेवा में भोसले, मोटे, सावंत, घोरपड़े, निंबालकर, शिर्के, माने और मोहिते परिवार थे। इसी के साथ कई देशमुख अधिकारों के साथ भी थे। शिवाजी ने इन शक्तिशाली परिवारों को वश में करने के लिए विभिन्न प्रकार की रणनीतियां बनाई। जैसे : वैवाहिक गठबंधन करना, देशमुखों को दरकिनार करने के लिए गांव के पाटिलों से सीधे-सीधे या बलपूर्वक अपने वश में करना।
शिवाजी ने उस वक्त वह सब कुछ किया जो उनकी ताकत को बढ़ा सकता था। लेकिन, शाहजी का बाद के वर्षों में शिवाजी के प्रति दोहरा व्यवहार रहा। उन्होंने उनकी विद्रोही गतिविधियों को अस्वीकार कर दिया। साथ ही बीजापुर से कहा कि वे शिवाजी के साथ जो चाहे वह कर सकते हैं। पश्चात, ईसवी 1664-1665 के आसपास एक शिकार दुर्घटना में शाहजी की मौत हो गई।
शिवाजी और अफजल खान का मुकाबला
4 नवंबर 1656, एक लंबी बीमारी के बाद बीजापुर के सुल्तान मोहम्मद अदिल शाह की मौत हो गई। बिजापुर, शिवाजी की सेना से हुई हार के कारण अप्रसन्नता था। इसके पश्चात अली आदिल शाह द्वितीय उत्तराधिकारी बना। युवा अली आदिल शाह द्वितीय सुल्तान बनने के बाद बिजापुर सरकार स्थिर हो गई और उसने अपना ध्यान शिवाजी की ओर केंद्रित कर दिया।
इसवी सन 1657 को द्वितीय सुल्तान ने एक अनुभवी सेनापति अफजल खान को शिवाजी को पकड़ने के लिए भेजा। लेकिन, उससे पहले बीजापुर सेना ने शिवाजी के परिवार के पवित्र तुलजा भवानी मंदिर और हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ स्थल पंढरपुर के विठोबा मंदिर को अपवित्र कर दिया।
बीजापुर की सेना द्वारा शिवाजी का पीछा किए जाने पर शिवाजी पीछे हटकर प्रतापगढ़ दुर्ग पर चले गए। वहां उपस्थित उनके सहयोगियों ने शिवाजी पर आत्मसमर्पण करने के लिए दबाव डाला। लेकिन, शिवाजी शांत दिमाग से आगे की रणनीति बना रहे थे।
दोनों ही सेना एक दूसरे को पूर्णत: परास्त करने में असमर्थ थी। एक तरफ शिवाजी की सेना और दूसरी तरफ अफजल खान की सेना | शिवाजी घेराबंदी तोड़ने में असमर्थ थे और अफजल खान घेटाबंदी के उपकरण की कमी के कारण किले पर कब्जा करने में असमर्थ था।
2 महीने बीत चुके थे। अफजल खान ने शिवाजी के पास एक दूध भेजा और एक सुझाव दिया कि दोनों नेता बातचीत के लिए किले के बाहर अकेले मिलेंगे। दोनों की मुलाकात 10 नवंबर 1659 को प्रतापगढ़ दुर्ग की तलहटी में एक झोपड़ी में तय हुई। अफजल खान ने यह शर्त रखी थी कि आप सिर्फ एक तलवार और 2 सैनिक को ला सकते हैं।
शिवाजी को इस बात का संदेह हो रहा था कि क्या अफजल खान उसे गिरफ्तार करेगा या उन पर हमला बोल देगा? इसीलिए उन्होंने अपने कपड़ों के नीचे एक कवच पहन रखा था। ताकि अफजल खान अगर वार करें; तो वह बच सके। इसी के साथ बाईं भुजा पर एक बाघ नख (धातु से बना बाघ का पंजा) और दाहिने हाथ में एक खंजर छुपा रखा था।
तय अनुसार अफजल खान और शिवाजी की मुलाकात हुई। अफजल खान, शिवाजी को दबोच कर मार देना चाहता था। इसलिए उन्हें अपने बगल में दबाया और खंजर से वार किया। लेकिन, शिवाजी ने अपने कपड़ों के अंदर कवच पहन रखा था। जिस वजह से वह बच गए। जब शिवाजी ने देखा कि अफजल खान उन पर वार कर रहा है; तो उन्होंने बाघनख से उसका पूरा पेट फाड़ दिया और तलवार से अफजल खान का सर कलम कर दिया।
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शिवाजी महाराज के बाघनख और अफजल खान का वध |
इसके पश्चात, शिवाजी ने एक तोप दागी और अपने छुपे हुए सैनिकों को बीजापुर सैनिकों पर हमला करने का संकेत दिया। 10 नवंबर 1959 को लड़ी गई प्रतापगढ़ की आगामी लड़ाई में शिवाजी की सेना ने बीजापुर सल्तनत की सेना को निर्णायक रूप से हरा दिया। बीजापुर सेना के 3000 से भी अधिक सैनिक मारे गए। इसी के साथ शिवाजी ने बीजापुर के एक सरदार, अफजल खान के दोनों बेटे और दो मराठा प्रमुखों को बंदी बना लिया। प्रतापगढ़ पर हुई लड़ाई और उसके बाद जीत के बाद शिवाजी ने एक भव्य समीक्षा की। पकड़े गए शत्रुओं को धन, भोजन और अन्य उपहारों के साथ मुक्त कर दिया। मराठा सैनिकों को तदनुसार पुरस्कृत किया।
शिवजी और पन्हाला की घेराबंदी
दोस्तों, शिवाजी के खिलाफ भेजी गई बीजापुर की सेना को पराजित करने के बाद शिवाजी की सेना ने कोंकण और कोल्हापुर की ओर रुख किया। इसी के साथ पन्हाला किले पर अपना कब्जा कर लिया। शिवाजी ने इसवी 1659 में रूस्तम ज़मान और फजल खान के नेतृत्व में भेजी गई बिजापुरी सेना को एक बार फिर हटा दिया। इसवी 1660 में आदिलशाह ने अपने सेनापति सिद्धी जोहर को शिवाजी से मुकाबला करने के लिए भेजा। उस समय शिवाजी अपनी सेना के साथ पन्हाला दुर्ग में डेटा डाले हुए थे। सिद्धि जोहर की सेना ने पन्हाला दुर्ग को घेर लिया। जिस वजह से दुर्ग तक आपूर्ति मार्ग बंद हो गए।
सिद्दी जौहर ने अपनी प्रभावकारिता को बढ़ाने के लिए राजापुर में अंग्रेजों से हथगोले खरीद कर पन्हाला पर बमबारी की थी। इसके लिए उन्होंने अंग्रेजों के तोपखाने में काम कर रहे मजदूरों को भी अपने साथ लिया था। जो स्पष्ट रूप से अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाला झंडा फहरा रहे थे।
पन्हाला पर महीनों की घेराबंदी के बाद शिवाजी ने सिद्धी जोहर से बातचीत करके 22 सितंबर 1660 को पन्हाला सौंप दिया और विशालगढ़ वापस चले गए हालांकि 1673 में शिवाजी ने एक बार फिर पनाला पर अपना कब्जा जमा लिया।
लेकिन इसी बीच अंग्रेजी कारखानों द्वारा किए गए विश्वासघात ने शिवाजी को क्रोधित कर दिया था। इसलिए उन्होंने 1663 में अंग्रेजी कारखानों को लूट कर अपने कब्जे में कर लिया।
पावनखिंड की लड़ाई
बाजी प्रभु देशपांडे मराठा सेना के सेनापति थे। उन्हें घोड़खिंड / पावनखिंड की लड़ाई मैं उनकी भूमिका के लिए जाना जाता है।
पन्हाला दुर्ग अब शिवाजी के कब्जे में था। एक दिन अचानक दुश्मन घुड़सवार सेना ने पन्हाला पर हमला कर दिया। शिवाजी के मराठा सरदार बाजी प्रभु देशपांडे 300 सैनिकों के साथ घोड़खिंड में दुश्मन को रोकने के लिए स्वेच्छा से आगे बढ़े। उन्होंने शिवाजी से बाकी बचे सेना के साथ विशालगढ़ सुरक्षित जाने के लिए कहा। इस दौरान छोटी मराठा सेना ने बड़े दुश्मनों को रोक रखा था। पावनखिंड की आगामी लड़ाई में, बाजी प्रभु देशपांडे भयंकर रूप से घायल हो गए थे। लेकिन वह तब तक लड़ते रहे; जब तक विशालगढ़ से तोप की आवाज नहीं सुनी।
शिवाजी सुरक्षित रूप से विशालगढ़ पहुंच गए और तोप की आवाज की। जिससे बाजी प्रभु देशपांडे को यह संकेत मिला कि - शिवाजी सुरक्षित रूप से किले पर पहुंच गए हैं।
दोस्तों, घोड़खिंड की इस लड़ाई में बाजीप्रभु देशपांडे, शिबोसिंह जाधव, फुलोजी और वहां लड़ने वाले अन्य सभी सैनिकों के सम्मान में घोड़खिंड की लड़ाई को पावनखिंड नाम दिया गया।
उम्मीद करते हैं दोस्तों, हमारे द्वारा दी गई यह जानकारी आप सभी दोस्तों को बेहद पसंद आई होगी और आप इसे अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया पर जरुर शेयर करेंगे। इसी के साथ आप कमेंट बॉक्स में दी गई जानकारी के बारे में अपनी राय जरूर देंगे। क्योंकि, दोस्तों कमेंट बॉक्स आपका ही है।
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